श्री मोहन भागवत, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक स्वयंसेवक का खुला पत्र

लेखक - अनिल चावला

माननीय सरसंघचालक जी,

सादर प्रणाम,

मैं आपसे कभी मिला नहीं हूँ। अतः स्वाभाविक है कि आप मुझे नहीं जानते होंगे। मैंने जब होश संभाला तब मेरे पिताजी ने मुझे संघ की शाखा में भेज दिया। १९७७ में पहली बार सक्रिय राजनीति में भाग लेते हुए मैंने मुम्बई में डॉ० स्वामी के चुनाव में कार्य किया। बाद में मुझे भाजपा में अनेक वरिष्ठजनों के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। स्वर्गीय अटल जी, श्री आडवाणी जी, डॉ० जोशी जी, स्वर्गीय ठाकरे जी, स्वर्गीय प्यारेलाल जी, स्वर्गीय जनकृष्णमूर्ति जी और श्री मोदी जी कुछ उल्लेखनीय नाम इस सन्दर्भ में कहते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है। कुछ समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी काम किया और थोड़ा सा काम स्वदेशी जागरण मंच में भी किया।

शिशु स्वयंसेवक के रूप में जो संस्कार प्राप्त हुए उनका प्रभाव आज तक है और शायद उन्हीं का परिणाम भी है कि लगभग साढ़े चार दशकों की सक्रियता के दौरान मैनें कभी पद की लालसा नहीं की। कहते हैं कि बिना रोये तो माँ भी दूध नहीं पिलाती, तो भाजपा में बिना माँगे पद मिलना संभव नहीं होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। खैर, अपने संघ के संस्कारों के कारण ही मैं सदा पदविहीन रहा हूँ और आज इसी कारण भाजपा एवं संघ परिवार का अंग नहीं समझा जाता हूँ।

मैं स्वयं को भाजपा एवं संघ परिवार का मित्र मानता हूँ (चाहे वे मुझे अपना मित्र मानें या ना मानें)। मित्र के रूप में मैं सच्चा शुभचिंतक हूँ, हितैषी हूँ परन्तु आश्रित नहीं हूँ। परिवार के अनुशासन से मुक्त रह कर परिवार का हित करने के लिए सदा तत्पर हूँ। आज यह पत्र मैं आपको अपने मित्रधर्म का निर्वहन करते हुए कर्तव्यबोध से लिख रहा हूँ। आप परिवार के मुखिया हैं और इसी कारण मैं आपको सम्बोधित कर रहा हूँ। हो सकता है कि इस पत्र की कुछ बातें आपको कटु लगें। जिस प्रकार कड़वी दवा देने वाला वैद्य दवा के लिए क्षमा नहीं माँगता, मैं भी उन कटु बातों के लिए क्षमाप्रार्थी नहीं हूँ। मुझे विश्वास है कि आप मेरी कटु हितकारी बातों को आभारपूर्वक ग्रहण करेंगे क्योंकि यही हिन्दू धर्म है।

जहाँ तक मैं समझता हूँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू हितों के लिए प्रतिबद्ध संगठन है। हिन्दुओं को संगठित करना, हिन्दुओं के सर्वांगीण विकास हेतु प्रयास करना तथा विश्व में हिन्दुओं को सम्मान दिलवाना - ये संघ के उद्देश्य हैं। अपने लगभग एक शती के अस्तित्व काल में संघ को अपने कार्य में अधिकतर समय सरकार से विरोध सहना पड़ा है। वर्ष १९९९ से २००४ तक अटल जी की गठबंधन सरकार के पश्चात २०१४ में पुनः भाजपा सरकार सत्तासीन हुई। यह हम सबके लिए प्रसन्नता का विषय था। परन्तु आज लगभग सात वर्ष के पश्चात हमें यह सोचना होगा कि क्या वर्तमान सरकार जिसे कुछ लोग मोदी-शाह सरकार भी कहते हैं उससे हिन्दुओं का हितसाधन हुआ है या नहीं।

विषय पर विस्तार से चर्चा करने के पूर्व मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि मैं हर उस व्यक्ति को हिन्दू मानता हूँ जो एकपुस्तकवादी नहीं है और स्वयं को हिन्दू मानता है। अतः मुसलमान, ईसाई तथा यहूदी हिन्दू नहीं हैं। बौद्ध और जैन यदि स्वयं को हिन्दू माने तो हिन्दू हैं अन्यथा नहीं हैं। सिख एक पुस्तक की पूजा अवश्य करते हैं पर एकपुस्तकवादी नहीं हैं। अधिकतर सिख स्वयं को हिन्दू मानते हैं और इसलिए भी सिख हिन्दू हैं।

चर्चा को पुनः मोदी-शाह सरकार पर लाना उचित होगा। इस सरकार को जब भी याद किया जाएगा तो नोटबंदी एवं देशबन्दी का स्थान सबसे ऊपर होगा। उसके बाद स्मार्ट सिटी, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। मैंने १८ मार्च २०१६ को अंग्रेज़ी में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था - नरेंद्र मोदी की पांच बड़ी गलतियाँ। उन पांच गलितयों में से तीन थी - स्मार्ट सिटी, स्टार्टअप इंडिया, एवं मेक इन इंडिया। अन्य दो गलतियाँ दो व्यक्ति थे जिनमे से एक का देहांत हो चुका है अतः उन व्यक्तियों का जिक्र करना उचित नहीं होगा।

उन पाँच बड़ी भूलों के पश्चात मोदी सरकार ने नोटबंदी की जिसके पश्चात पिछली सब गलतियाँ क्षुद्र प्रति होने लगीं। नोटबंदी से हिन्दुओं को भारी नुकसान पहुँचा। पूरे देश में अनेक व्यापारी बंधुओं ने आत्महत्या कर ली। अपवादों को छोड़ आत्महत्या करने वाले लगभग सभी व्यक्ति हिन्दू थे। नोटबंदी की घोषणा करते समय भारत के बाहर उपयोग हो रही भारतीय मुद्रा के बारे में कोई विचार नहीं किया गया। इसका सबसे बुरा प्रभाव नेपाल पर पड़ा जहाँ भारतीय मुद्रा व्यापक रूप से प्रचलन में थी। हिन्दूबहुल नेपाल भारत सरकार से समस्या को सुलझाने के लिए आग्रह करता रहा, लेकिन उसकी सुनना हमारे सत्ताधीशों ने उचित नहीं समझा। परिणामस्वरूप नेपाल से भारत के रिश्ते बिगड़ गए और नेपाल चीन की गोद में जा बैठा। नेपाल में हिंदूवादी संगठन भारत की नोटबंदी के बाद मुँह छिपाने को मजबूर हो गए।

नोटबंदी के पश्चात सरकार ने जी एस टी का जल्दबाजी में बिना समुचित तैयारी के क्रियान्वयन किया। पिछली सरकार की अच्छी परिकल्पना को गलत ढंग से लागू करने से छोटे व्यापारियों को आघात पहुँचा। ध्यान रहे कि जिन व्यापारी बंधुओं को कष्ट हुआ वे अधिकतर हिन्दू हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि पहले हिन्दू महासभा, फिर जनसंघ और बाद में जनसंघ का मूलाधार यही वर्ग था। अपने ही लोगों से जब चोट मिलती है तो उसकी पीड़ा कुछ अधिक होती है। देश के हिन्दू व्यापारी बंधुओं ने इस दर्द को मुंह सिल कर सहा।

अभी पिछले वर्ष कोरोना से बचने के नाम पर देशबन्दी थोप दी गयी। विश्व में किसी अन्य देश में ऐसी सख्ती नहीं की गयी जैसी भारत में की गयी। हमारे पड़ोसी देशों ने भी लॉक डाउन लगाया था पर कर्फ्यू किसी ने नहीं लगाया। परिणामस्वरूप पड़ोसी देशों में अर्थव्यवस्था की वैसी दुर्दशा नहीं हुई जैसी हमारे भारत में हुई। उल्लेखनीय बात यह है कि अर्थव्यवस्था की ऐसी तैसी करने के बावजूद भारत में प्रति एक लाख व्यक्ति कोरोना से मृत्यु दर बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं श्री लंका से अधिक रही है। आज यह पूछना आवश्यक है कि देशबन्दी से देश को क्या मिला? देशबन्दी से जो आर्थिक नुक्सान हुआ वह कोई अकादमिक आंकड़ों का खेल नहीं है। लाखों प्रवासी मजदूरों ने जो कष्ट भोगे उनसे हर संवेदनशील व्यक्ति की आँख में आँसू आ गए पर अफ़सोस कि दिल्ली में बैठे सत्ताधीशों के कान पर जूँ नहीं रेंगी। उन प्रवासी मजदूरों में निस्संदेह अधिकतर हिन्दू थे।

नोटबंदी, देशबन्दी इत्यादि को याद करने के पीछे मेरा उद्देश्य निरर्थक आलोचना करना कतई नहीं है। मुझे इनकी आज याद आ रही है क्योंकि इन्हें भी देशहित में बताया गया था ठीक उसी तरह जैसे आज कृषि उत्पादों से सम्बंधित कानूनों को बताया जा रहा है। मुझे नहीं मालूम कि कृषि कानून कृषि के लिए लाभदायक हैं या नहीं। हाँ, पिछले अनुभवों के आधार पर मन में शंका उठना स्वाभाविक है। अच्छे से अच्छे कानून का यदि गलत क्रियान्वयन हो तो परिणाम हानिकारक होते हैं जैसा जी एस टी के साथ हुआ। कृषि कानूनों के सन्दर्भ में भी उक्त बात सत्य होगी। अतः मैं कृषि कानूनों को सही या गलत ठहराने की किसी बहस में पड़ना नहीं चाहता। आज प्रश्न विधिक नहीं राजनैतिक और राष्ट्रहित से सम्बन्धित है।

लोकतंत्र केवल बहुमत के आधार पर डंडा चलाने का नाम नहीं है। लोकतंत्र में सबको साथ लेकर चलना आवश्यक होता है। हर स्तर पर चर्चा, बहस, स्वस्थ विचार विमर्श आवश्यक होता है। मेरा व्यक्तिगत मत है कि भाजपा, जो स्वयं को संघ परिवार का अंग बताती है, उसकी जिम्मेदारी इस सन्दर्भ में अन्य दलों से अधिक है। संघ परिवार का घोषित एजेंडा राष्ट्र निर्माण का है, हिन्दू समाज को संगठित करने का है। अतः भाजपा का यह कर्त्तव्य है कि वह हर विषय में समाज में व्यापक विचार विमर्श कर कदम उठाये और कोई ऐसा कार्य ना करे जिससे समाज में विघटन आये।

कृषि कानूनों के सम्बन्ध में यह निश्चय रूप से कहा जा सकता है कि इन कानूनों के सम्बन्ध में समाज में व्यापक रूप से शंकाएँ हैं, और संभवतः विरोध भी है। जिस प्रकार इसके विरोध में किसान लामबन्द हो गए हैं वह सुखद कतई नहीं है। मेरे कुछ मित्र यह कहते हैं कि कुछ मुट्ठी भर लोग हैं जिन्हे या तो कुचल दिया जाएगा या फूट डाल कर निपटा दिया जाएगा। मैं अपने इन मित्रों से सहमत नहीं हूँ। इंदिरा गांधी के आपातकाल के विरुद्ध जो आंदोलन था उसमें संघ परिवार ने सक्रिय भूमिका निभायी थी। मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि मुखर विरोध करने वालों की पूरे देश में संख्या देश की जनसँख्या का नगण्य प्रतिशत थी। वैसे यह भी कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले भारत की तत्कालीन जनसँख्या का दो प्रतिशत से भी कम लोग थे।

कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी जन आंदोलन में समाज का एक बहुत छोटा सा वर्ग ही भाग लेता है और अधिकतर लोग केवल मूक दर्शक बन कर देखते रहते हैं। कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के सम्बन्ध में आँकड़ों में उलझना निरर्थक है। यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि इसको समाज के व्यापक वर्ग से मूक समर्थन मिल रहा है। यदि इस आंदोलन को पुलिसिया दमन से या फूट की राजनीति से दबाया गया तो इसका दूरगामी परिणाम समाज को विघटन की और ले जाएगा।

मेरी उत्तर भारत के कुछ व्यक्तियों से चर्चा हुई। उन्होंने मुझे बताया कि अब ये आंदोलन गुजराती विरुद्ध उत्तर भारतीय बन गया है। एक ओर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड हैं और दूसरी ओर दो चार गुजराती हैं। यह विवरण मेरा नहीं है, पर यह आम बोल चाल में देश के एक बहुत बड़े भूभाग पर दबी जबान में कहा जा रहा है। मुझे दुःख है कि मैं स्वयं को जिसका मित्र समझता हूँ वह संघ परिवार दो चार गुजरातियों का पर्याय माना जा रहा है।

क्या वास्तव में कृषि कानून इतने लाभदायक हैं कि भाजपा और संघ परिवार अपनी पहचान, अपना अस्तित्व, अपना सब कुछ उनके लिए दाँव पर लगा दें? क्या ये कानून इतने अच्छे हैं कि इनके लिए हिन्दू समाज का विघटन स्वीकार कर लिया जाए?

आज अत्यंत दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन के कारण खलिस्तान समर्थकों को जमीन प्राप्त हो गयी है। शायद जाट नेतृत्व को साम दाम दंड भेद से अपने पक्ष में ला कर सरकार किसान आंदोलन की कमर तोड़ने में सफल हो जाए। पर ऐसा करके वह पंजाब में अलगाववादियों की मदद करेगी। मन में कुंठा और पीड़ा लेकर यदि किसान दिल्ली बॉर्डर से वापस अपने गाँव वापिस गया तो उसके दिल की आग सुलगती रहेगी और कहीं ना कहीं बाहर निकलेगी। याद रहे कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के रीढ़ की हड्डी पंजाब के किसानों द्वारा प्रदान की गयी थी। पोर्ट ब्लेयर अंडमान में यदि आप वहां की सेल्लुलर जेल में जाएंगे तो देखेंगे कि शहीद क्रांतिकारियों की तस्वीरों में अधिकतर पंजाब के किसान हैं। कहीं ऐसा ना हो कि सरकार वही गलती कर दे जो अंग्रेज़ों ने जलियांवाला बाग में की थी।

दमन की बात करते हुए ध्यान आता है कि आज किसान आंदोलन का जो चित्र विश्व के सम्मुख उभरा है उसमें सड़क पर गाड़ी जा रही कीलें और बनाई जा रही कांक्रीट की दीवारें हैं। ये छवियाँ लम्बे समय तक विश्व मानस पर रहेंगीं और हमारे विकास के अजेंडा को पीछे धकेल देंगीं। यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान आंदोलन का सामना करने के लिए केंद्र सरकार ने जो कदम उठायें हैं उनसे किसानों के प्रति पूरे विश्व में सहानुभूति का भाव उदित हो रहा है। मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वाले देशों में हमारा नाम जुड़ गया है। यह अत्यंत चिंता का विषय है। जिस प्रकार, बिना किसी दोष के, महात्मा गाँधी की हत्या के उपरान्त संघ को एक कठिन समय का सामना करना पड़ा था, ऐसा ना हो कि संघ को बिगाड़ी गयी छवि का खामियाज़ा भुगतना पड़े।

पिछले कुछ वर्षों में भाजपा को लगातार चुनावी सफलताएँ मिल रही हैं। इसके लिए निश्चय ही मोदी-शाह एवं उनकी पूरी टीम बधाई के पात्र हैं। पर यह सफलता केवल उनकी व्यक्तिगत नहीं है। आज भाजपा की जो स्थिति है उसके पीछे संघ परिवार के लाखों स्वयंसेवकों तथा भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं का खून-पसीना है। पर इन सब के साथ ही कॉंग्रेस का रसातल में जाना भी है। मैं जब वर्तमान सरकार की आलोचना करता हूँ तो कुछ मित्र कहते हैं कि क्या आप राहुल गांधी को इस देश का प्रधान मंत्री बनाना चाहते हो। ऐसा कतई नहीं है। मुझे नहीं लगता कि गांधी परिवार के होते हुए कॉंग्रेस पुनः जीवित हो पाएगी। इस देश को अब कॉंग्रेस से कोई उम्मीद नहीं है।

देश की आशा का केंद्र भाजपा और संघ परिवार है। मेरा मानना है कि भाजपा और संघ परिवार में आज भी हर स्तर पर अनेक क्षमतावान व्यक्ति हैं जो किसी एक या दो व्यक्तियों की हठधर्मिता के सम्मुख समाज के व्यापक हितों को बलिदान नहीं होने देंगे। राष्ट्रहित तथा हिन्दूहित के लिए जिन्होंने जीवन की आहुति दे दी है वे सामने आ रहे खतरे को भाँप कर उचित कदम बिना किसी संकोच के उठाएंगे।

मैनें प्रारम्भ में उल्लेख किया था कि मैं स्वयं को भाजपा और संघ परिवार का मित्र मानता हूँ और मित्रधर्म का निर्वहन करते कर्त्तव्यबोध के तहत आपको अर्थात परिवार के मुखिया को पत्र लिख रहा हूँ। मैं आपसे पूर्ण विनम्रता से सादर अनुरोध करता हूँ कि कृपया हिन्दू समाज और देश के व्यापक हितों को दृष्टिगत रखते हुए तत्काल उचित कदम उठाएँ। कृषि क़ानून अब गौण हो चुके हैं। कृषि क़ानून यदि बहुत अच्छे भी हैं तो भी इतने अच्छे नहीं हैं कि उनके लिए हिन्दू समाज के दूरगामी हितों पर कुठाराघात स्वीकार कर लिया जाए।

अंत में केवल एक छोटी सी बात कह कर मैं अपनी बात समाप्त करूँगा। कुछ लोगों का कहना है कि यदि सरकार ने कृषि कानूनों पर कदम पीछे खींच लिए तो विरोधी सशक्त हो जायेंगें तथा प्रत्येक विषय पर पीछे हटना पड़ेगा। मैं इस से सहमत नहीं हूँ। लोकतांत्रिक राजनीति में कुछ आगे, कुछ पीछे चलना सामान्य बात है। अधिकाधिक लोगों की बात सुनने और उनको साथ लेकर चलने से पार्टी एवं संगठन मजबूत होगा कमजोर नहीं। इसके विपरीत यदि हम विश्व भर में शत्रु बनाते रहेंगें तो हमारा पतन निश्चित है। मैं जानता हूँ कि मुझे यह आपको बताने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है क्योंकि मुझे यह संघ ने ही सिखाया है कि लोगों को जोड़ो, तोड़ो नहीं।

एक बार पुनः मैं आपको नमन करता हूँ और इस आशा एवं विश्वास के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ कि आप हिन्दू समाज के विघटन को रोकेंगे और देश के व्यापक हितों हेतु समुचित कदम उठाएंगें।

शेष शुभ,

अनिल चावला

७ फ़रवरी २०२१

ANIL CHAWLA is an engineer (B.Tech. (Mech. Engg.), IIT Bombay) and a lawyer by qualification but a philosopher by vocation and an advocate, insolvency professional and strategic consultant by profession.
Please visit www.indialegalhelp.com to learn about his work as lawyer.
Please visit www.hindustanstudies.com to know about his strategic research.
Please visit www.samarthbharat.com to read his articles, mini-books, etc.
Please write to the author about the above article

Anil Chawla

Registered Office: MF-104, Ajay Tower, E5/1 (Commercial), Arera Colony, BHOPAL - 462 016, Madhya Pradesh, INDIA